जीवन का सत्य...
जीवन का सत्य
जब जीवन तुम जी चुकी होगी,
या अपनी प्रौढ़ अवस्था में होगी,
तब समझोगी—
प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं है।
जो आज सफलता लगती है,
वो बस एक छलावा है,
युवा मन का रोमांच,
एक क्षणिक तृप्ति,
जो समय के साथ
धुंधली पड़ जाएगी।
यह उमर ही ऐसी होती है,
जब दिमाग़ की भूख
दिल से अलग राह मांगती है,
कोई नया सफर,
कोई ऊँचाई,
कोई पहचान,
मगर अंत में—
जब साँझ की ठंडी हवा
चेहरे को छुएगी,
तब एहसास होगा—
कि सच्ची तृप्ति तो बस प्रेम में थी,
जो स्थायी था,
जो तुम्हारा था,
जो आत्मा का सुकून था।
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