मेरी प्रकृति है प्रेम करना...

 

मेरी प्रकृति है प्रेम करना

मेरी प्रकृति है प्रेम करना,
मैं ऐसा ही हूँ।
मैं अपनी प्रकृति कैसे बदल सकता हूँ?
प्रकृति ने मेरी रचना ऐसे ही की है।

हो सकता है,
मुझे इसके लिए अपमान मिले,
किसी से अपेक्षित प्रेम न मिले,
मैं जीवन भर अकेला ही रह जाऊँ।

मेरी आत्मा अतृप्त ही रहे,
और मेरा शरीर भी त्याग दे एक दिन।
पर मैं इसमें कोई बदलाव नहीं ला सकता,
अगर मेरी यही नियति है, तो यही सही है।

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