जीतूंगा तो मैं ही, चाहे दुनिया के ख़त्म होने के बाद ही।
जीतूंगा तो मैं ही,
चाहे दुनिया के ख़त्म होने के बाद ही।
मेरी राहों में अंधेरा घना है,
हर कदम पर एक नया ग़म है,
मंज़िल धुंधली, रास्ता कठिन,
पर हौसला अब भी संग है।
हार की ज़ंजीरें तोड़ दूंगा,
वक़्त की कैद से मैं आज़ाद ही।
आंधियाँ चाहे मुझसे टकराएँ,
सपनों को चाहे रौंद जाएँ,
टूटा हूँ, बिखरा हूँ कई बार,
पर जज़्बा मेरा मर न पाए।
गिरकर भी उठता रहूंगा,
जीत मेरी होगी, चाहे बाद ही।
लोग कहें कि मैं हार गया हूँ,
मुझे अपने हश्र पे रोना चाहिए,
पर उनकी सोच ही छोटी है,
मुझे क़दम-क़दम पे खोना चाहिए?
मैं हार मानूं, ये मुमकिन नहीं,
जीतूंगा मैं, चाहे बरसों बाद ही।
वक़्त मुझे आज़माने आया,
पर मैं भी इरादों का पक्का हूँ,
धूप में जलकर भी ठंडा नहीं,
मैं लपटों का अपना राही हूँ।
चाहे दुनिया राख बन जाए,
पर मैं जलूंगा, जलकर फीनिक्स-सा फिर खड़ा ही।
ख़त्म हो जाए ये ज़माना,
टूट जाए ये सारा जहाँ,
पर मेरा विश्वास रहेगा अडिग,
मेरी क़लम लिखेगी एक नई दास्तान।
जीत की इबारत मैं खुद लिखूंगा,
चाहे दुनिया के ख़त्म होने के बाद ही।
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