अगर प्रेम का अर्थ केवल विवाह है...
अगर प्रेम का अर्थ केवल विवाह है,
तो वह प्रेम नहीं, एक बंधन है।
प्रेम को समझना, उसे जानना,
यही सबसे आवश्यक ज्ञान है।
प्रेम को ना रिश्तों की दरकार,
ना बंधनों की कोई चाहत।
यह तो स्वतः ही बहने वाली
एक अनमोल अनुभूति है।
प्रेम कभी सीमाओं में नहीं बंधता,
यह स्वतंत्रता का एहसास है।
यह तो पंख देता है उड़ने को,
ना कि परों को काटता है।
अगर तुम प्रेम करते हो,
पर उसे खुला आकाश नहीं देते,
तो वह प्रेम नहीं,
सिर्फ प्रेम का भ्रम है।
एक बार विश्वास करके देखो,
उसे मुक्त कर दो पूरी तरह।
जहाँ भी जाए, जितना भी भटके,
पर लौटकर तुम्हारे पास ही आएगा।
प्रेम छोड़कर नहीं जाता,
यह सदा दिल में बसता है।
दूर होकर भी पास ही रहता है,
क्योंकि सच्चा प्रेम बंधन नहीं,
बल्कि एक अनंत एहसास है।
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