मेरा पति परदेस गया है...

 

मेरा पति परदेस गया है

मेरा पति परदेस गया है,
नई-नई शादी हुई है,
अधूरी मांग, अधूरी चूड़ियाँ,
बस राह उसकी देखी है।

सूनी कलाई, सूना आँगन,
बिन उसके सब फीका है,
दिल में हलचल, आँखें नम,
सपनों में बस वही दीखा है।

रात को चुपके रो लेती हूँ,
दिन में खुद को समझाती हूँ,
उसकी यादों के साए में,
सांस-सांस को जीती जाती हूँ।

सासु माँ को दिलासा देती,
"वो जल्दी आएँगे माँ,"
पर उनके बूढ़े नयनों में,
उमड़ पड़ते हैं ग़मों के बादल समाँ।

कल रात वह सपनों में आए,
मुझे देख मुस्काए थे,
कहा, "माँ कैसी है मेरी?"
बस यही पूछ पाए थे।

मैंने उनकी तस्वीर को थामा,
सुन कर माँ की आँख भर आई,
काँपते होठों से बोलीं,
"बेटा, अब और देर न कर भाई।"

दरवाजे की चौखट तक जाकर,
खुद से हर रोज़ सवाल करती हूँ,
कब बजेगी वो प्रिय पायल,
जिसके लिए रातें जागती हूँ।

मेहंदी अब तक हाथों में है,
पर रंग उसका फीका पड़ गया,
तेरी यादों की आंधी में,
दिल का दीप भी बुझ गया।

पल-पल चिट्ठी लिखती हूँ,
पर भेज नहीं पाती हूँ,
शब्द भी मेरे रूठे हैं,
तेरी खबर तक न ला पाती हूँ।

चिट्ठी के हर अक्षर में,
तेरी बातें लिखी रहती हैं,
हर कोने में बस तेरा नाम,
तेरी यादें बसी रहती हैं।

माँ कहती हैं, धीरज रख,
ससुर जी भी चुप बैठे हैं,
सब तेरा इंतजार कर रहे,
पर आँखों में आँसू गीले हैं।

अब तो बस दुआ यही है,
संदेशा तेरा आ जाए,
तू लौटे अपने घर आँगन,
माँ का आशीष संग लाए।

सपनों में जो पूछ रहे थे,
"माँ कैसी है?" सुनो प्रीत,
अब माँ का दिल रोता है,
लौट आओ, यही है विनीत।

Comments