मूर्खता का बोध...
मूर्खता का बोध...
तुम हो ही क्या?
तुम मूर्ख हो,
खुद को क्या समझ रहे हो?
नलकूप के मेढ़क भी नहीं,
अब तक खड़े होने लायक भी नहीं।
तुमने संसार देखा ही नहीं,
और जिसे सफलता मान बैठे हो,
ज्ञानी जनों की दृष्टि में
वह सबसे बड़ी मूर्खताओं में से एक है।
पहले समझो कि ज्ञान क्या है,
सफलता का अर्थ क्या है।
मेरे जूते पटकने से भूकंप नहीं आता,
मेरे जल्दी उठने से सूरज नहीं उगता।
तुम मूर्ख हो,
मूर्ख ही रहोगे।
और सबसे बड़ी विडंबना यही है—
तुम इसे कभी समझ भी नहीं पाओगे।
क्योंकि केवल एक ज्ञानी ही समझ सकता है
कि मूर्खता क्या होती है।
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