तुम्हारे लिए...

 

तुम्हारे लिए

तुम्हारे लिए मुझसे बढ़कर कुछ नहीं था,
तुम्हारे लिए मैं ही ज़रूरी था।
मेरा प्रेम तुम्हारे लिए,
सत्य की अंतिम सीमा तक विस्तृत था,
एक ऐसी अबूझ व्याख्या,
जिसे शब्दों में बाँध पाना असंभव था।

तुम्हारी आँखों में जो स्वप्न मैंने उकेरे,
वे मेरी आत्मा की परछाइयाँ थे।
तुम्हारे स्पर्श में जो कंपन था,
वह मेरे हृदय का मौन संगीत था।
मैंने तुम्हें अपने प्रेम का महासागर सौंपा,
तुम उसमें बहने के बजाय
किनारे पर खड़ी, एक और किनारा खोजने लगीं।

लहरों ने हमें बुलाया था,
हमारे नाम की ध्वनि गूँजी थी उस गहराई में,
जहाँ हम साथ डूब सकते थे,
जहाँ प्रेम और अस्तित्व का भेद मिट सकता था।
पर तुमने डूबने के भय से,
एक सुरक्षित किनारा चुन लिया,
जहाँ पानी की छुअन भी
तुम्हारी सतह को गीला नहीं कर सकती थी।

तुम जिसे सफलता समझ रही हो,
वह मात्र आत्मा से पलायन है।
जो दौड़ तुम्हें ऊँचाइयों तक ले जा रही है,
वह भीतर की गहराइयों से तुम्हें दूर कर रही है।
तुम्हारी मुस्कान में अब अर्थ नहीं,
तुम्हारी आँखों में अब चमक नहीं,
तुम्हारी आवाज़ में अब वह कंपन नहीं,
जो कभी प्रेम की आभा से स्पंदित था।

तुम्हारी आत्मा की हत्या,
तुम्हारे ही हाथों हो रही है।
तुम अपने अस्तित्व को एक स्वप्न मान चुकी हो,
जिसे जागने के लिए भूल जाना ज़रूरी समझती हो।
पर याद रखना, प्रेम कभी समाप्त नहीं होता,
वह बस मौन में बदल जाता है,
एक अनकही चीख की तरह,
जो केवल वही सुन सकता है,
जिसने वास्तव में प्रेम किया हो।

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