"हक़ और हकीकत"

 

"हक़ और हकीकत"

कुछ लोगों को देखकर ही लगता है,
वो इसके लायक नहीं हैं।
अच्छा है, उन्हें ये चीज़ नहीं मिली,
कहीं से भी हक़दार नहीं लगते हैं।

ऐसा नहीं कि दुनिया में गलत नहीं होता,
हर मोड़ पर अन्याय बिखरा पड़ा है।
बहुत से लोगों के पास वो चीज़ें हैं,
जिनके हक़दार वे कभी नहीं थे।

हम देखते हैं, महसूस करते हैं,
पर चाहकर भी कुछ बदल नहीं सकते।
बस मन में सवाल उठते रहते हैं,
क्या न्याय का कोई मोल नहीं?

हम तो बस चाह सकते हैं,
दुनिया को चला नहीं सकते।
जो सही है, वो हमेशा नहीं मिलता,
और जो गलत है, वो अक्सर फलता है।

पर फिर भी, हम आशा नहीं छोड़ते,
हो सकता है, कहीं कोई पलटा आए।
शायद किसी दिन ये दुनिया बदले,
और हर हक़दार को उसका हक़ मिल जाए।

Comments