मेरी आँखों ने अंतर करना सीख लिया है...
**"कल जो था
वो आज नहीं है,
आज जो है
वो कल नहीं होगा।
ज़रूरी तो नहीं कि सब ख़त्म हो जाए,
इतनी लंबी भी ज़िंदगी नहीं
कि बार-बार दिल लगाया जाए।
पर अकेले कब तक
डोर को कोई हवा में रख पाए?
चाहता तो नहीं था,
पर उसने जो मन बना लिया है,
जाने देता हूँ उसे,
कि अब मैं भी थक चुका हूँ
उम्मीद बाँधते-बाँधते।
वक़्त आ गया है
कि मैं अपनी नज़र बदल लूँ,
और भी ख़ूबसूरत हैं इस जहाँ में,
उनकी भी तारीफ़ करूँ।
मेरी कविताएँ और शायरी
कब से कह रही हैं मुझसे—
अब झूठ लिखना बंद करो,
कविताओं और शायरी को बदनाम मत करो।
मैं कोई इंसान नहीं
कि बेवफ़ा निकलूँ,
मुझे वही कहने दो
जो सच में है।
हो गया ख़त्म—
मैं क्या करूँ?
फिर प्यार करूँगा,
फिर मर मिटूँगा एक नए चेहरे पे,
वो भी लाजवाब होगा।
मेरी आँखों ने अंतर करना सीख लिया है..."**
- रूपेश रंजन
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