निरर्थकता का सुकून...
निरर्थकता का सुकून
मेरे जीवन का कोई प्रयोजन नहीं,
कोई अर्थ ही नहीं है मेरे जीवन का।
मैं बस जी रहा हूँ खुद के लिए,
अपनी ही तसव्वुर की दुनिया में।
ना कोई मंज़िल, ना कोई राह,
ना किसी से कोई गहरा निबाह।
बस अपने ख्यालों में बहता हूँ,
जैसे बिन लहर का कोई प्रवाह।
यह थोड़ा स्वार्थी सा लगता है,
कि मैं बस अपने लिए जी रहा हूँ।
कहता हूँ— "मुझे किसी से फ़र्क़ नहीं,"
फिर भी कहीं भीतर कुछ खोज रहा हूँ।
क्या ये सच्ची ख़ुशी है या कोई छल?
क्या मैं वास्तव में संतुष्ट हूँ बिल्कुल?
शायद हाँ, शायद नहीं,
पर मुझे अब और कुछ चाहिए भी नहीं।
बस इतना ही काफ़ी है मेरे लिए,
न कोई प्रश्न, न कोई द्वंद्व।
जो भी है, जैसा भी है,
उसी में ढूँढ़ लिया है मैंने आनंद।
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