कितना दर्द है..
कितना दर्द है,
सुबह भी दर्द,
शाम भी दर्द,
दर्द ही दर्द।
कदम बढ़ाऊँ तो काँटे,
ठहर जाऊँ तो साये,
हर मोड़ पर बेचैनी,
हर रास्ते पर परछाईं।
कुछ भी खुद नहीं होता,
सब कुछ करना होता है,
थोड़ी भी कोई चूक हुई,
तो दर्द ही दर्द।
ज्यादा सो लिया तो परेशान,
कम सो लिया तो परेशान,
नींद भी अब सवाल बन गई,
सपनों में भी हलचल छाई।
ज्यादा खा लिया तो परेशानी,
कम खा लिया तो परेशानी,
हर निवाला जैसे ताने देता,
जैसे हर लम्हा आज़माता।
थोड़ा रुका तो देर हो गई,
तेज़ चला तो राह खो गई,
जीवन का ये अजीब हिसाब,
हर तरफ़ बस उलझन बेहिसाब।
सोचा, दर्द से लड़ूँ,
पर वो साया बनकर चला,
हँसने की कोशिश की,
पर भीतर कुछ टूटा मिला।
फिर अहसास हुआ,
दर्द ही जीने का सबक है,
हर चोट इक सीख है,
हर ठोकर इक फ़लक है।
अब दर्द से डरता नहीं,
उससे दोस्ती कर ली है,
जीवन को खुलकर जी लिया,
हर ग़म को मैंने अपना लिया।
रूपेश रंजन
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