मेरी सोच बाक़ी लोगों से अलग है...

 मेरी सोच बाक़ी लोगों से अलग है...


मेरी सोच बाक़ी लोगों से अलग है,

काफ़ी अलग है, बहुत गहरी, बहुत अलग है।

जहाँ भी जाता, मौन ओढ़ना पड़ता,

हर शब्द से पहले सौ बार सोचना पड़ता।


इस संसार में जीना आसान नहीं,

हर क़दम पर चलना इम्तिहान नहीं?

यहाँ सत्य भी प्रश्नचिह्न बन जाता,

झूठ भी तालियों संग गाया जाता।


क्या करूँ? क्या जीवन को समाप्त कर दूँ?

या फिर इस लड़ाई को निरंतर जारी कर दूँ?

शायद दुनिया की सोच बदलनी होगी,

पर क्या यह राह मुझसे संभलनी होगी?


या जो जैसा है, उसे बहने दूँ,

ख़ुद को इस भीड़ में गुम होने दूँ?

पर क्या इसी में जीवन का सार है,

या विपरीत धाराओं में जीना मेरा आधार है?


हर सुबह नई उलझन लाती,

हर रात फिर वही पीड़ा दोहराती।

क्या मैं गलत हूँ या यह दुनिया?

क्या मैं अकेला हूँ या मेरी ही परछाई बन गई चुनिया?


लोग कहते हैं, समायोजित हो जाओ,

अपने विचारों को बदलकर भीड़ में खो जाओ।

पर मैं तो अलग धारा का प्रवाह हूँ,

अपनी ही अग्नि में जलता एक चिराग़ हूँ।


क्या जीवन का अर्थ बस सह लेना है?

हर अन्याय को मौन सहन कर लेना है?

या फिर इस सोच को विद्रोह बनाऊँ,

हर बंधी सोच को मुक्त कर जाऊँ?


शायद मेरी राह कठिन होगी,

पर सत्य की यह विरासत अमर होगी।

अगर मौन भी एक उत्तर होता,

तो बुद्ध भी केवल चुप रह जाते।


संघर्ष ही मेरा सत्य बनेगा,

हर असहमत सोच को उजास मिलेगा।

जीवन कठिन है, पीड़ा भी सही,

पर आत्मा की लौ बुझने न देनी रही।


न जीवन को त्यागूँगा, न झुकूँगा,

हर सवाल का उत्तर बन कर उभरूँगा।

और अगर हार भी गया इस रण में,

तो अपनी ही मशाल जलाकर मरूँगा।


मेरा जीवन समर्पित इस सत्य को,

चाहे जीऊँ अकेला, पर जीवंत रहूँगा।

हर विपरीत धारा से टकराकर,

अपना अस्तित्व मैं स्वयं गढ़ूँगा।


रूपेश रंजन...

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