तुम्हें संबंध क्यों चाहिए?
"तुम्हें संबंध क्यों चाहिए?
बस इसलिए कि
तुम बोलो और मैं सुनूँ?
यह आख़िर कब तक चलेगा?
ऐसा हमेशा नहीं चल सकता।
मैं खींच रहा हूँ इस संबंध को,
कब तक खींच पाऊँगा,
मुझे नहीं पता।
पर कभी न कभी यह डोर तो टूटेगी ही,
और जब टूटेगी,
फिर कभी नहीं जुड़ पाने के लिए।
क्योंकि जो बीत रहा है,
वो मेरे लिए सुखद नहीं है।
मेरे लिए कुछ भी नहीं है इस संबंध में।
टूटने के बाद भी मेरे पास कोई वजह नहीं होगी
इस संबंध को सामान्य करने के लिए।
ऐसा ही होता है इन संबंधों के साथ।
मैं समुद्र नहीं हूँ
कि सारी नदियाँ आकर मुझमें गिरें।
मुझे भी किसी बड़े समुद्र में गिरना है,
और चिंतमुक्त होना है।
- रूपेश रंजन
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