क्या पाया तुमने कुंभ में नहाकर...
क्या पाया तुमने कुंभ में नहाकर
क्या पाया तुमने कुंभ में नहाकर?
क्या ही बदल गया तुम्हारे जीवन में?
मुझे तो कुछ ख़ास बदलाव अनुभव नहीं हो रहा है,
फिर वही जीवन, वही उलझनें।
लहरों ने धोए तन के मैल,
पर मन के अंधियारे क्या मिट सके?
भीड़ में डुबकी लगाई थी तुमने,
पर क्या भीतर के खालीपन से लड़ सके?
गंगा की धारा पवित्र है निसंदेह,
पर क्या तुम्हारे विचार भी निर्मल हुए?
क्या सच में तुमने त्यागे अहंकार,
या बस देह को जल में समर्पित किए?
मोक्ष की चाह में चले थे तुम,
पर मोह की गांठें क्या खुल सकीं?
स्नान तो किया, पर आत्मा से पूछो,
क्या सच में तुम कुंभ से बदल सकें?
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