मुझे बसंत बनना था, संसार ने मुझे ठंडा बना दिया...
मुझे बसंत बनना था,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया
मुझे बसंत बनना था,
फूलों-सा महकना था,
नव कोंपलों-सा खिलना था,
पर हवाओं ने रुख बदल दिया,
सपनों को पतझड़ कर दिया,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया।
मैं धूप बनके आया था,
रोशनी का गीत सुनाया था,
पर बादलों ने ढक लिया,
सपनों को कोहरे में रख दिया,
जो जलना था, बुझा दिया,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया।
रंगों में नहाना चाहता था,
गीतों में बह जाना चाहता था,
पर बंधनों ने रोक लिया,
चुप्पियों में समेट लिया,
जो गूँजना था, थमा दिया,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया।
प्रेम की बयार बहानी थी,
कोयल की तान सुनानी थी,
पर रिश्तों ने चुप करा दिया,
दिल को पत्थर बना दिया,
जो धड़कना था, जड़ कर दिया,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया।
मैं लहरों-सा बहना चाहता था,
निर्झरिणी-सा गुनगुनाना चाहता था,
पर समय ने जकड़ लिया,
मौन का आवरण ओढ़ा दिया,
जो उफनना था, रोक दिया,
संसार ने मुझे ठंडा बना दिया।
पर अब भी दिल कहता है,
सर्द हवाओं से लड़ता है,
जो बुझ गया, जल सकता है,
जो थम गया, बह सकता है,
बसंत फिर लौटेगा कभी,
संसार मुझे रोक न सकेगा।
Comments
Post a Comment