वो बस तुम्हें देख रहा है…
वो बस तुम्हें देख रहा है…
तुम समझ रहे हो, अभी खेल शुरू हुआ है,
पर वो तो कब का इस मैदान से गुज़र चुका है।
जिस लम्हे तुमने पहली चाल चली,
उसने खेलना तभी छोड़ दिया था ख़ुशी-ख़ुशी।
जिस बाज़ार में तुम दांव लगाने आए हो,
वो वहाँ कभी सौदागर बनकर छाया था।
तुम सोचते हो, उसे मात दे दोगे,
पर वो तो खेल के हर पत्ते को पहले ही पढ़ चुका है।
तुम्हारी हर चाल, उसके लिए एक पुरानी कहानी,
वो मुस्कुरा रहा है, उसकी नज़रें हैं हैरानी।
क्योंकि तुम्हारे लिए ये एक नया जंग का सफर है,
और उसके लिए—ये सब बस एक गुज़रा हुआ सफर है।
मज़ा तो खेल में तब है…
मज़ा तो खेल में तब है, जब बाज़ी तेरे हाथ हो,
और सामने वाला समझे, अभी भी उसकी बात हो।
तेरी जीत लिखी हो, मगर तू फिर भी खेले,
उसकी हर ख़ुशी के लिए, खुद के क़दम धीमे रखे।
कभी वो मुस्कराए, कभी ख़ुशफ़हमी में रहे,
और आख़िर में देखे, कि तू कब का जी चुका है!
किसके पास वक़्त है…
किसके पास वक़्त है, ये पूछने का सवाल है,
तू चाहे तो हाज़िर, वरना सब बेमिसाल है।
मैंने बुलाया तो मेरे पास हर लम्हा तेरे लिए,
तूने नकारा तो तेरा वक़्त ही बेहाल है।
कभी बहाने, कभी मजबूरियों का खेल है,
इश्क़ के बाज़ार में ये कैसा झमेल है?
सच तो ये है कि चाहत दिल से निभाई जाती है,
वरना रिश्ते तो बस बातों से ही बनाई जाती है।
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