पर्वत का धैर्य...

 

पर्वत का धैर्य

किसी ने पूछा पर्वत से, "तुम्हें ग़ुस्सा क्यों नहीं आता?"
लोग तुझे चोट पहुँचाते हैं, फिर भी मौन क्यों रहता?"

पर्वत हँसा, फिर बोला, "कैसे बताऊँ तुझे ये राज़?
जो सहनशक्ति को समझ ले, वही होता है सबसे खास।"

"मुझे प्रभु ने ऊँचा किया, मुझे धैर्य का रूप दिया,
मेरी चुप्पी मेरी शक्ति है, जो हर वार को सह गया।"

"लोग चोट पहुँचाते हैं, पर मैं गिरता नहीं हूँ,
जो स्थिरता को अपनाए, वो हारता नहीं, मिटता नहीं।"

"हवा आए, तूफ़ान आए, बादल गरजे, बिजली तड़पे,
पर मैं वहीं का वहीं खड़ा, अपनी ज़मीन से बंधा, अडिग।"

"इंसानों की बातें हल्की हैं, वो समय के संग बह जाएँगी,
पर जो अडिग रहता धरा पर, वो इतिहास बन जाएँगी।"

"जो मौन की भाषा समझे, वो जीवन का मर्म पाए,
ऊँचाइयाँ चिल्लाकर नहीं, शांति से ही पाई जाएँ।"

"अगर हर तीर का जवाब दूँ, तो अपना वजूद ही खो दूँगा,
जो सह लेता हर प्रहार, वो ही अमर हो जाता है।"

"मैं विशाल हूँ, स्थिर हूँ, मेरी पहचान अमिट है,
जो खुद को ऊँचा बना ले, उसे शब्दों की चोट कब लगती है?"

"इसलिए ऐ पथिक सुन ले, हर बात का उत्तर मत देना,
जो चुप रहकर जीत जाए, वही असली विजेता है।"

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