मैं दो कदम आगे बढ़ा, मैं दो कदम पीछे आ गया।...
मैं दो कदम आगे बढ़ा,
मैं दो कदम पीछे आ गया।
गणित के अनुसार शून्य हुआ मेरा कर्म,
मैं फिर से अपनी जगह आ गया।
पर महसूस किया जब मैंने,
राहों में जो धूप जली,
पाँवों ने जो धरती छूई,
हवा जो मेरे संग चली,
मैंने तो सच में चार कदम चले,
यह अनुभूति है, यह सजीव छवि।
संख्याएँ जोड़े, घटाएंगी,
पर वे यात्रा को ना माप सकें,
हर धड़कन की आहट में जो था,
वह अंकगणित में कहाँ दिखे?
जो मैं महसूस कर चुका,
उसे गणित कभी न लिख सके।
पीछे लौटकर भी, मैं नया हूँ,
हर कदम ने कुछ सिखाया है,
हर ठहराव में गति छुपी थी,
हर पल ने मुझको गढ़ा है,
शून्य के भ्रम को तोड़कर,
मैंने खुद को समझा है।
अब ना गिनूंगा मैं कदमों को,
अब ना ठहराव से डरूंगा,
जो भी बीता, अच्छा बीता,
अब सौ नहीं, हजार चलूंगा,
राह मेरी खुद मुझसे कहती है,
"अब बस आगे ही बढ़ूंगा।"
मंज़िलें अब दूर नहीं हैं,
यह हौसला जो जाग उठा,
संघर्षों ने दीप जलाया,
हर अंधेरा भाग उठा,
अब मैं शून्य नहीं, अनंत हूँ,
बस बढ़ता ही जाऊँगा।
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