अद्भुत है ये दुनिया...

 

अद्भुत है ये दुनिया

अद्भुत है ये दुनिया, कैसा ये हाल है,
रिश्तों में दरारें हैं, दिलों में सवाल है।

भाई को भाई न माने, ये कैसी बेबसी,
खून का रिश्ता भी अब बन गया एक फांसी।

शर्म कहीं खो गई, जमीर भी सो गया,
इंसानियत का दीपक, अंधेरों में खो गया।

पति कर्ज़ में डूबा, चिंता से घिरा,
पत्नी गहने खरीदे, सोने में तिरा।

रिश्तों में सम्मान अब बचा ही नहीं,
हर कोई मतलब का ही सगा है यहीं।

किसी की कोई सुनने को तैयार नहीं,
हर इंसान अपने में ही मस्त सही।

जो मन में आया, वही कर रहा,
बिना सोचे-समझे, बस बढ़ रहा।

माँ-बाप भी अब धन की पूजा करें,
धनवान संतान की ही महिमा गाएँ।

गरीब का सच कोई सुनता नहीं,
दौलत के आगे कोई झुकता नहीं।

संबंध अब बस एक नाम बन गए,
दिलों के रिश्ते अब शाम बन गए।

चाहकर भी अपनापन मिलता नहीं,
हर रिश्ता अब व्यापार बनता यही।

जो जैसा है, उसे वैसा ही मानो,
सच कहो तो झूठ का टोकरा उठाओ।

संवेदनाएँ मर रही, दुनिया बदल रही,
इंसानियत की बुनियादें दरक रही।

अद्भुत है ये दुनिया, हकीकत अजीब,
जहाँ रिश्ते हैं पर जज़्बात हैं गरीब।

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