किनारे पे बैठे लोग...
किनारे पे बैठे लोग...
किनारे पे बैठे जो समंदर को तकते,
गहराइयों का राज़ वो कैसे समझते?
लहरों की हलचल में ढूँढते हैं कहानी,
पर बूंदों की तड़प को कब कोई पढ़ते?
शब्दों से भीतर झांकने की चाहत,
पर अर्थ की गहराई तक कब कोई जाता?
मुझमें समाया इक समंदर है गहरा,
पर नजरों का साहस कहाँ तक पहुँचाता?
जो उतरे सागर में, वही मोती पाए,
जो डरते किनारे, वो सिर्फ़ जल ही निहारे।
है हिम्मत तो डूबो मेरे लफ़्जों में आकर,
कहीं मिल जाएँगी कुछ बातें तुम्हारी भी अंदर।
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