तुम्हारे लिए.....
तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए मुझसे बढ़कर कुछ नहीं था,
तुम्हारे लिए मैं ही ज़रूरी था।
मेरा प्रेम तुम्हारे लिए,
यही बस एक सच था।
मगर जब लहरों ने हमें पुकारा,
मैंने हाथ बढ़ाया, तुमने किनारा।
मैंने चाहा संग बहें पानी में,
तुम चली गईं दूर, इक कहानी में।
मैंने चाहा जीवन का गोता लगाएँ,
सपनों की गहराइयों में उतर जाएँ।
पर तुम, सफलता के मोह में बंधकर,
छोड़ आईं वो प्रेम-रंग भरकर।
जिसे तुम जीत कह रही हो,
असल में वह हार है।
तुम दौड़ रही हो परछाइयों के पीछे,
और खो रही अपना संसार है।
तुम सच में अपनी आत्मा की हत्या कर रही हो,
जो जीवन था, उसे खुद ही बिखेर रही हो।
किनारे की रेत मुट्ठी से फिसल जाएगी,
पर बहाव में जो साथ रहे, वही यादों में बस जाएगी।
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