"कुछ शायरी"...
मुझे लगा, मेरी ही ग़लती थी,
पर समझ आया, ये तो उसकी ही बीमारी थी।
बीमारी का इलाज भी हो जाए गर,
पर पागलों को होश में कौन लाए फिर?
जो ख़्वाबों में जीते, हक़ीक़त से डरते हैं,
उनका इलाज भी करे तो असर कब करते हैं?
तू आई थी, मैं नहीं आया था,
तेरी दुनिया का मैं साया नहीं था।
तुझे नशे की बीमारी है,
तेरी ख़्वाहिशें ही लाचारी हैं।
तू बहकती रही अपने छलावे में,
होश में तुझे कौन लाएगा इस बहाने में?
"तेरे इस्तक़बाल के लिए कोई ख़ुदा थोड़े बैठा है,
वो ख़ुदा है, हमेशा ख़ुदा ही रहेगा।
तू सोच, तुझे क्या मिलेगा?
एक ख़ुदा हो सकता था तेरा,
वो भी जुदा हो गया।"
तेरे इस्तक़बाल के लिए कोई ख़ुदा थोड़े बैठा है,
वो ख़ुदा है, हमेशा ख़ुदा ही रहेगा।
तेरी सोच का फ़र्क़ है, तेरा ग़ुरूर है,
वरना वो तो रहमतों से हर किसी को नवाज़ेगा।
तू सोच, तुझे क्या मिलेगा इस तक़ब्बुर से,
जो ख़ुद को बड़ा समझे, उसे ख़ुदा ही गिरा देगा।
धूल को सिर पे चढ़ाने से, धूल फूल नहीं बन जाती,
चमकते शीशे पर चाहे जितनी गर्द जम जाती।
सिर का क्या बिगड़ेगा, जो ऊँचाइयों को जानता है,
धूल झाड़कर फिर उठेगा, जो गिरकर भी मुस्कुराता है।
जो असली है, वो धूल में भी हीरा ही रहेगा,
झूठी चमक को वक़्त का झोंका उड़ा देगा।
अगर सोच ही ख़राब हो, तो उसे क्या समझाया जाए,
जो आईना ही तोड़ बैठे, उसे चेहरा क्या दिखाया जाए।
अगर आँख ही ख़राब हो, तो चाँद पर शक कैसा,
जिसे धूप ही ना भाए, उसे सवेरा क्या दिखाया जाए।
नज़र का दोष नहीं, दिल का अंधापन है,
हर हसीन शय में भी, जहाँ ज़हर दिखता है।
जो मिट्टी में ही खुश है, उसे सितारे क्यों गिनाए,
जो सवाल ही ना समझे, उसे जवाब क्या बताए।
मैंने चाहा ज़मीन को आसमाँ से मिलाने की,
मगर मेरी क्या बिसात, बस ख्वाब सजाने की।
हवा से कहूँ कि मेरे अरमान उड़ाए,
या लहरों से बोलूँ कि कश्ती बहाए।
मगर किस्मत की लकीरें जो बदल ना सकी,
तो क्यों उम्मीद करूँ इन फ़ासले मिटाने की।
सितारे भी रोशन थे, चाँद भी करीब था,
मगर हाथ बढ़ाया तो बस अंधेरा नसीब था।
मैंने चाहा, मगर चाहत मेरी अधूरी रही,
ये खेल भी शायद क़िस्मत को मंज़ूर नहीं।
बराबरी वालों के लिए ही मुकाम सजते हैं,
हर कोई चाहकर भी सितारे नहीं छू सकते हैं।
संघर्ष करो या काबिलियत आज़माओ,
कौआ कोयल की मीठी बोली नहीं गा सकता है।
ये चीज़ सिर्फ बराबर वालों के लिए होती है,
चाहे जितनी कोशिश कर लो, ये बात सच्ची होती है।
सदियों से क़ायदा यही चला आ रहा है,
कौआ कभी कोयल नहीं बन पाया है।
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