प्रकृति को कष्ट पहुँचाने जैसा है...
**"किसी के प्रेम को स्वीकार नहीं करना,
या किसी को प्रेम करने से रोकना,
या किसी को प्रेम नहीं करना,
मन में प्रेम होना,
पर उस प्रेम को प्रदर्शित नहीं कर पाना,
सच में यह प्रकृति को कष्ट पहुँचाने जैसा है,
जिसकी नींव ही प्रेम है।
हम प्रकृति के साथ अन्याय कर रहे हैं,
हम प्रकृति को दर्द दे रहे हैं।
जैसे हमारी प्रकृति है प्रेम करना,
प्रकृति की भी प्रकृति प्रेम ही है।
हम ख़ुद तो ग़लत कर ही रहे हैं,
हम प्रकृति के साथ भी ग़लत कर रहे हैं।"**
— रूपेश रंजन
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