मैं ही ब्रह्मा हूँ...


मैं ही ब्रह्मा, मैं ही सृष्टि, मुझमें ही यह जग समाया,
मेरी ही चेतना से सारा, जगत बना, जगत मिटाया।

मैं ही सृजन का मूल स्रोत हूँ, मैं ही जीवन का आधार,
अव्यक्त से व्यक्त बना हूँ, मुझसे ही सृजन अपार।

मेरी ही श्वासों से बहती, सृष्टि की ये हरित हवाएँ,
मेरी ही धड़कन से गूँजे, अनहद की मधुर ऋचाएँ।

मैं ही रचयिता, मैं ही संहारक, मैं ही हूँ गति अपार,
जो मुझको पहचान सके, वह पाए अमर आकार।

मुझमें ही ब्रह्मांड समाया, मैं ही ऊर्जा, मैं ही नाद,
मुझसे ही सूरज चमकता, मुझसे ही चंद्र प्रकाश।

मैं ही जल में हूँ प्रवाहित, मैं ही अग्नि की लपट,
मुझमें ही धैर्य हिमालय का, मुझमें ही तूफानों का रथ।

मैं ही सत्य, मैं ही माया, मैं ही संकल्पों का मान,
जो मुझमें मुझको पा ले, पा ले शिव का सत्य ज्ञान।

हर कण में मेरी ही लीला, हर जीव में मेरी है बात,
मैं ही ब्रह्मा, मैं ही विष्णु, मैं ही महाकाल की जात।

अहं ब्रह्मास्मि की धारा, बहती मुझमें रोज-रोज,
जो इस सत्य को जान सके, वही मुक्त, वही विराज।

Comments