मैं बनना चाहता हूँ महाभारत का कर्ण...

 

मैं बनना चाहता हूँ महाभारत का कर्ण

मैं बनना चाहता हूँ कर्ण, वह योद्धा महान,
जो हर कठिनाई में भी रहा दृढ़ और अडिग इंसान।
दानवीर, महादानी, सच्चा कर्मयोगी,
हर परिस्थिति में जिसने निभाई अपनी योग्यता की भागीदारी।

छीन लिया जिसने जन्म से ही अधिकार,
पर फिर भी न मानी उसने कभी हार।
अपनी मेहनत से अर्जित किया हर गुण,
फिर भी सहा तिरस्कार, सहा हर घाव गहन।

न जन्म ने दिया उसे कुल का सम्मान,
न मिला उसे कोई राजसी पहचान।
फिर भी धनुर्धर ऐसा, रण में अपराजेय,
सहस्त्रों में एक, सच्चा वीर, अद्वितीय।

हर अपमान को सहकर भी जो बना महान,
न दोस्ती छोड़ी, न छोड़ा स्वाभिमान।
जो मिला उसे, उसे अपनाया गर्व से,
न रूठा कभी, न डगमगाया धर्म से।

दुशासन के सामने नहीं झुका उसका मन,
सूतपुत्र कहकर जिसका किया गया अपमान।
पर फिर भी उसने निभाई मित्रता की शपथ,
रखा वचन, सहा विधि का हर दंड।

शस्त्र विद्या में पारंगत, अर्जुन का प्रतिद्वंदी,
पर विधि का लेखा, बना उसकी हार का संदिग्धी।
जब भी समय आया, दिया सब कुछ दान,
यहाँ तक कि कवच-कुंडल भी कर दिए बलिदान।

कर्ण, वह योद्धा, जिसने त्याग का पाठ पढ़ाया,
हर अन्याय के सामने भी धर्म का दीप जलाया।
मैं बनना चाहता हूँ वही कर्ण दृढ़,
जो कठिन समय में भी कभी न हो विमुख।

न परिस्थितियाँ रोकें, न बाधाएँ झुकाएँ,
हर चुनौती को मुस्कान से अपनाएँ।
हर कठिनाई में भी अपना कर्तव्य निभाऊँ,
मैं कर्ण बनकर, सच्चे पथ पर सदा बढ़ता जाऊँ।

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