Israel Hamas ceasefire on 19 Jan, 2025

 

क्रूर मज़ाक

इतने लंबे युद्ध के बाद,
जहाँ धरती लहू से भीग गई,
जहाँ सपने राख में मिल गए,
जहाँ चीखें तक थक गईं।

हज़ारों जानें बुझ गईं,
घर वीरान, गलियाँ सुनसान,
हर गली में मातम पसरा,
हर दिल में दर्द बेइंतहान।

और अब यह दस दिनों का विराम,
कि आँसू बहा लें हम खुलकर?
कि देख सकें उजड़ी बस्तियाँ,
औ’ याद करें जो थे अपने घर?

यह विराम नहीं, यह ठहाका है,
यह दिलों पर चलता खंजर है,
जो राख हुईं ये ज़िंदगियाँ,
उन पर कैसा ये अवसर है?

कौन लौटेगा इन गलियों में,
जो युद्ध ने हमसे छीन लिया?
कैसे भरेंगी ये गहरी दरारें,
जो हर आशियाने को तोड़ गया?

क्या दस दिन में दर्द मिटेगा?
क्या आँसू चुक जाएंगे?
क्या फिर से चूल्हे जलेंगे?
क्या बच्चे लौट आएंगे?

नहीं, ये विराम एक छलावा है,
एक क्रूर मज़ाक हमारे साथ,
जहाँ मौत का तांडव जारी है,
और हम गिन रहे दिन सौगात।

अगर सच में शांति लानी थी,
तो युद्ध कभी होता नहीं,
जो दस दिन दे सकते थे हमें,
वो हमेशा की चुप्पी देते सही।

पर नहीं, ये विराम भी छल है,
फिर बंदूकें गरजेंगी यहाँ,
फिर जल उठेंगी बस्तियाँ,
फिर श्मशान सजेंगे वहाँ।

तो क्या हम बस रोते रहें?
युद्ध में अपनों को खोते रहें?
या लड़ें इस युद्ध के विरुद्ध,
कि यह विराम सदा को हो सके?

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