पराजय प्रिय है मुझको...
पराजय प्रिय है मुझको,
परिश्रम के अनल के बाद।
संग्राम की ज्वालाओं में,
गढ़ूँ मैं निज अस्तित्व का नाद।
सरल पथ का पथिक नहीं मैं,
कठिनाइयाँ हों हर पग पर।
हर बाधा बन शूल खिले,
हर अश्रु बने सागर तर।
मुझे सहजता प्रिय नहीं,
संगर्ष ही मेरा श्रृंगार हो।
विपदाओं की आँधियों में,
अडिग खड़ा मैं आधार हो।
हे विधाता, लिखो भाग्य ऐसा,
कि थकान भी मेरा साहस बने।
हर पराजय हो नव सृजन,
हर आघात प्रबल प्रयास बने।
रुपेश रंजन
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