तुम मेरी प्रियसी हो....
तुम मेरी प्रियसी हो...
मैं क्यों श्याम की बात करूँ,
मैं क्यों तुम्हें राधा मानूं?
ना ये कोई पुरानी कहानी,
ना अधूरी मोहब्बत की निशानी,
मुझे तुम्हें कभी नहीं छोड़ना है,
यूँ ही ज़िंदगी भर अपने रंग में रंगना है।
ना मैं श्याम, ना तुम राधा,
ये इश्क़ कोई पुरानी रीति नहीं,
तुम मेरी प्रियसी हो, मेरी अपनी,
कोई और तुमसे प्रीत नहीं।
मैं तुम्हें प्रेम के गुलाल में रंगूंगा,
तेरे गालों पर अपने स्पर्श की होली खेलूंगा,
कोई लोककथा नहीं, कोई प्रतीक नहीं,
बस तुम और मैं, इस प्यार में झूमूंगा।
तुम्हारे बदन पर उड़े अबीर की महक,
मेरी बाहों में सिमटकर खो जाए सब शक,
हर रंग मेरा, हर धड़कन तुम्हारी,
इस होली, मोहब्बत की नई सुबह लाए।
तो आओ, भूल जाएं श्याम-राधा की गाथा,
बनाएं अपनी प्रेम की अनोखी परिभाषा,
ना कोई दूरी, ना कोई इंतज़ार,
बस हम और ये रंगों का प्यार।
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