"हर हर महादेव"

 

"हर हर महादेव"

ना अपमान का संताप, ना सम्मान का लोभ,
हर हर महादेव, जपो केवल शिव का शोध।

अवरोध आएँगे, मार्ग में विघ्न अनेकों,
पर तू अडिग रह, सृजन कर स्वप्नों के सेतुओं।

जो है, वही है, उसमें ही सत्य प्रकट,
जो शाश्वत है, वही सदा रहता अखंड।

वो सर्वोच्च है, परम तत्व से परिपूर्ण,
यहाँ सब क्षुद्र, निम्न, तुच्छ और अधूर।

यहाँ की चिंता व्यर्थ, सब माया का भ्रम,
जो ब्रह्म का है अंश, वही है निष्कलंक।

तू ब्रह्मांड का सार, प्रकृति का आलिंगन,
संसार की क्षुद्र बातों से ना कर स्पंदन।

तेरी पूजा शिखर पर, तेरे कर्म दिव्य,
ना मोह, ना भोग, ना ही कोई क्लेश।

मनुष्य अल्पज्ञ, तेरा कर्तव्य महान,
स्नेह से सींच उन्हें, पर कर ना आत्मनिर्भरता दान।

भरोसा रख, पर आत्मा को समर्पित ना कर,
तेरा ध्येय महान, ना सीमित, ना अस्थिर।

साधना में रह, तपस्या का अंगीकार कर,
योगी सा जी, तृष्णा का परित्याग कर।

शिव का मार्ग ही तेरा उद्धारक,
ना स्वार्थ, ना परिग्रह, केवल प्रेम भावक।

जो भी मिला, प्रसाद है, जो गया, भस्म,
संयम और श्रद्धा से बढ़ा, रख मन को सतत।

तेरा पथ कठिन, पर उसका संबल अडिग,
महाकाल की छाया में तेरा पग-पग सुरक्षित।

अंधकार भी आए, तो भी न ठहर,
तेरा प्रकाश स्वयं तुझमें अंतर्निहित प्रखर।

कर्म की लौ जला, योग की अग्नि प्रखर,
मोह, क्रोध, द्वेष का कर दे संहार अमर।

सत्य के चरणों में रख तू अपने भाव,
वही तेरा ध्येय, वही तेरा अभाव।

हर हर महादेव, यह मंत्र अमर,
तेरी आत्मा में है वही शिव स्वरूप सागर।

रूपेश रंजन


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