न अपमानस्य पीड़ा, न समानस्य मोह।
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न अपमानस्य पीड़ा, न समानस्य मोह।
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उच्चारितं “हर हर महादेव” — वन्दना-संग्रहस्य उद्घोष।
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विघ्नाः आगमिष्यन्ति, अचलं तव पन्थानम्।
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विवेकदीपनदीः प्रकाशितं मार्गदर्शनम्।
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स्वधर्मे स्थितः, आत्मसंरक्षणं शाश्वतम्।
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यथावत् स्वस्वरूपेण, न परिवर्तितः कदापि।
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अयं जगत् केवलं क्षुद्र, निम्नगुणसमूहः।
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त्वमेव ब्रह्माण्डस्य अधिप, अनन्तस्य निवासः।
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प्रकृतिपूजनं समर्प्य, दिव्यम् आत्मनं जागृतम्।
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मनोबुद्धेर्निर्मलता, आत्मसमर्पणं च निरन्तरम्।
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उज्ज्वलतेजसा, प्रकाशते तव जीवतत्त्वम्।
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अनादिकालादारभ्य, अनन्तरूपं तव चेतनम्।
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विमुक्तिमार्गेण, अहंकारं त्यक्त्वा प्राप्य।
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उत्कृष्टानुभावेन, भाग्यं सदा विकसन्।
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क्लेशानां विनाशेन, आत्मबलं उज्जवलितम्।
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न तु साधारणं तव अस्तित्वं, न हि मनोवृत्तयः।
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यत्र विश्वासः प्रवहति, तत्र प्रेमस्वरूपं विभाति।
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विरहस्य दुःखं न, आत्मबलस्य पूर्तिः भवति।
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अद्भुतं तेजोमयं, चित्तस्य विमलस्वभावम्।
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शाश्वतं सत्यं च, हृदयस्य अन्तर्मुखं प्रकाशयन्।
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आत्मविश्वासः ज्योत्स्नासमानः, दिव्यगगनं आलोकयन्।
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कालक्षणिकत्वं जानी, नीतिपथं नित्यं प्रशस्तम्।
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विश्वस्य उच्चतम् स्वरूपं, तव अद्वितीयदर्शनम्।
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परिवर्तने न आसक्तः, स्वभावस्य सत्यनिष्ठा च।
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संसारविघ्नानां निवारणं, तव धैर्येण सिद्धम्।
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स्वयमेव विश्राम्य, शांतचित्तः आत्मसन्निवेशः।
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धैर्यवंतः मनोबलः, सदा अविरलप्रवाहः।
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स्वतन्त्रचित्तता, विमलमनः संगमः।
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स्वप्नरूपेण उदात्तः, अकल्पनीयः तेजस्वी।
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आदर्शपरिपूर्णः, आत्मरूपस्य निर्बाधसंग्रहः।
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विपत्तीनां समागमं, निष्कामभावेन विहाय।
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बाधाः सन्ति नित्यम्, परं तव उत्साहः विमलः।
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सहजं विमुक्तात्मा, कर्मपथे स्वयमेव समुपस्थितः।
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मौनस्य शब्धः, विश्वविचारस्य उद्घोषः।
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सृजनशीलतया, प्राणस्पन्दनं च निर्मितम्।
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चित्तस्य अनुभवः, स्वप्नवत् सत्यस्य प्रतिबिम्बः।
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विवेकदीप्तिर्दिव्यः, आन्तरिकदर्शनस्य प्रकाशः।
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निराशाविनिर्मुक्तः, जीवनपरंपरायां निरंतरः।
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उन्नतिकामना तव, स्वयमेव निर्मिता हरितम्।
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शुभ्रं वेदना, संकल्पेन विमलम् अभिनिर्मितम्।
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नानाविधं विमर्शः, गूढार्थस्य उत्कर्षम्।
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बुद्धिपीठे समर्पितः, शौर्यं च उदात्तं प्रस्फुरन्।
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उदात्तभावेन आचरन्, स्वात्मनं प्रचण्डेन शोभितम्।
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परिपूर्णक्रियायाम्, कर्मसिद्धिः सदा अनुकरणीयः।
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महासमुद्रस्य तरङ्गैः, आत्मविश्वासस्य उत्कर्षः।
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विरहिणां वेदनां न, कदापि बाधा स्वीकृतम्।
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उदात्तस्वभावेन, मनसि निर्मलचिन्तनम्।
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अनुग्रहप्रभया, हृदयस्य आत्मिक स्पंदनम्।
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मौनसाक्षात्कारः, आत्मबोधस्य प्रतिफलस्वरूपम्।
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धर्मगुणसंयुतः, चरित्रं तव अखण्डं प्रदीपम्।
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सज्जनता सम्प्रदायेन, सर्वार्थसिद्ध्यै सन्निवेशः।
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आत्मिकउन्नतिः, जगत् व्यापकं प्रकाशमानम्।
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सत्यव्रतेन अनुशासितः, ज्ञानस्य शाश्वतं प्रवाहः।
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कर्मयोगे संलग्नः, जगत् स्पृशन् सदा निर्विकल्पम्।
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अनंतगगनस्पर्शेण, चरितार्थं तव विमलम्।
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निराकारस्वरूपेण, जीवनस्य मूलाधारं प्रतिबिम्बितम्।
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विवेकदीप्तिः, आत्मबोधस्य स्रोतः समर्पितः।
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स्वस्फूर्तिदायकः, हरिताम्बरः हृदयसमृद्धः।
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कालस्य मूल्यं जानाति, चिंतनीयः तव विवेकः।
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मनोज्ञसत्त्वेन, प्रेरणा रूपेण प्रवाहमानः।
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संघर्षस्य स्पर्धायाम्, उत्कर्षः नवीनं सदा।
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विश्वनाटकस्य भागे, जीवनं भावसंवेदनम्।
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सर्वसिद्ध्यै समर्पितः, प्रेरणास्फुलिङ्गं अद्वितीयम्।
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नित्यं चरन्, स्वत्वेन प्रमुदितः चिरं जीवन्।
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चेतनाविपुलता, नवीनस्फुरणस्य स्वप्नरूपम्।
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जगद्विस्तारस्य अनुभूति, शाश्वतसत्त्वस्य प्रतिबिम्बम्।
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अनवरतप्रयासेन, कर्मपथे सजगः प्रस्थितः।
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निरवध उज्ज्वलता, आत्मतत्त्वस्य प्रबलप्रतिबिम्बः।
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अद्भुतभूमेः विमलता, मनसि उदात्ताभिमुखता च।
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प्रकृतिस्थ आत्मा, भक्तिपूर्णः परमअमृतरसः।
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विधेयभावेन तिष्ठ, अनादि विज्ञानं अवलम्ब्य।
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उत्कर्षपन्थानं निर्मातुं, स्वयमेव प्रेरितः सहसा।
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सर्वं परिपूर्णं प्रतिबिम्बितं, आत्मदर्पणस्य दृढम्।
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स्वरूपस्य आभासः, चित्तस्य उल्लासं प्रददाति।
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निरुपद्रव्यं तव जीवमाला, अद्भुतं चिरन्तनम्।
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शाश्वती स्मृति, हृदयस्य अर्चिष्मन्ता प्रदीपः।
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समयस्य अनुकूल्येन, सदा निर्मिता सर्वदा प्रकाशिता।
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अवगाहय आत्मानं, त्रिपथगामी आस्थायाः संगतिः।
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मानवेषु कालं न व्यर्थं करो, तेषां प्रेमं विश्वासं च धारय।
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सर्वं निर्गुणं तव धाम, अनन्तं, अमृतं च विमलम्।
अर्थ (हिन्दी में)
1. न अपमान की पीड़ा है, न सम्मान का मोह।
2. “हर हर महादेव” का उच्चारण, यह वंदना का उद्घोष है।
3. बाधाएँ आएँगी, लेकिन तेरा मार्ग अडिग रहेगा।
4. विवेक की ज्योति मार्ग को प्रकाशित करती रहेगी।
5. अपने धर्म में स्थित रह, आत्मसंरक्षण ही शाश्वत है।
6. जो जैसा है, वैसा ही रहने दे, कभी परिवर्तन मत कर।
7. यह संसार केवल तुच्छ और निम्न गुणों का समूह है।
8. तू ही ब्रह्मांड का अधिपति है, अनंत का निवास है।
9. प्रकृति की पूजा कर, अपने दिव्य आत्मा को जाग्रत कर।
10. मन और बुद्धि की निर्मलता, आत्मसमर्पण ही सच्ची साधना है।
11. उज्ज्वल तेज से तेरा जीवन प्रकाशित है।
12. अनादिकाल से तेरा चेतन स्वरूप अनंत है।
13. अहंकार को त्यागकर मुक्ति का मार्ग प्राप्त कर।
14. उत्कृष्ट अनुभूति से तेरा भाग्य सदा विकसित होगा।
15. क्लेशों के विनाश से आत्मबल प्रज्वलित होगा।
16. तेरा अस्तित्व साधारण नहीं, न ही तेरी मनोवृत्तियाँ।
17. जहाँ विश्वास बहता है, वहीं प्रेम का प्रकाश फैलता है।
18. विरह में दुःख नहीं, आत्मबल की पूर्णता होती है।
19. अद्भुत तेज से मन की निर्मलता स्वभाव में बनी रहे।
20. शाश्वत सत्य हृदय के अंतर में प्रकाशित होता है।
21. आत्मविश्वास चंद्रमा की रोशनी जैसा है, जो दिव्य गगन को आलोकित करता है।
22. क्षणभंगुरता को जान, नीति के मार्ग को सदा प्रशस्त रख।
23. इस विश्व में तेरा स्वरूप सबसे ऊँचा और अद्वितीय है।
24. परिवर्तन में आसक्त मत हो, अपने सत्य स्वभाव में स्थित रह।
25. संसार की बाधाओं को अपने धैर्य से दूर कर।
26. स्वयं में विश्राम कर, शांत चित्त से आत्मसंधान कर।
27. धैर्य और मनोबल की धारा सदा अविरल प्रवाहित हो।
28. स्वतंत्र विचार और निर्मल मन का संगम तुझे उन्नति देगा।
29. स्वप्नों में तू उच्च कोटि का है, कल्पना से परे तेजस्वी है।
30. आदर्शों से परिपूर्ण, आत्मस्वरूप में अडिग रह।
31. संकटों को निष्काम भाव से त्याग दे।
32. बाधाएँ नित्य हैं, पर तेरा उत्साह निर्मल और स्थिर रहे।
33. मुक्त आत्मा सहज रूप से कर्म-पथ पर स्वयं उपस्थित रहती है।
34. मौन का शब्द ही विश्व विचारों का उद्घोष है।
35. सृजनशीलता ही जीवन की ऊर्जा है।
36. मन के अनुभव स्वप्न की भाँति सत्य के प्रतिबिंब होते हैं।
37. विवेक का प्रकाश आत्मदर्शन का उजाला है।
38. निराशा से मुक्त होकर, जीवन को सतत आगे बढ़ा।
39. तेरा उत्कर्ष तेरे भीतर स्वयं निर्मित होता है।
40. शुद्ध संवेदनाएँ और पवित्र संकल्प तुझे उज्जवल बनाएँगे।
41. विभिन्न विचार गहन अर्थ को विकसित करते हैं।
42. बुद्धि के आसन पर स्थापित शौर्य सदा प्रशंसनीय होता है।
43. उदात्त भावना के साथ आचरण कर, आत्मा को दिव्य बना।
44. संपूर्ण कर्म में सफलता सदा अनुकरणीय होती है।
45. महासागर की लहरों की तरह आत्मविश्वास को ऊँचा कर।
46. विरह का दुःख बाधा नहीं, यह आत्म-विकास की कसौटी है।
47. उदात्त स्वभाव से मन में निर्मल चिंतन आएगा।
48. अनुग्रह की प्रभा से हृदय की आत्मिक स्पंदनाएँ जागृत होंगी।
49. मौन साक्षात्कार ही आत्मज्ञान का प्रतिफल है।
50. धर्म और गुणों से युक्त चरित्र दीपक की तरह अखंड प्रकाशित रहेगा।
51. सज्जनता के नियम से जीवन में सिद्धि प्राप्त होगी।
52. आत्मिक उन्नति का प्रकाश संपूर्ण जगत में व्याप्त होता है।
53. सत्य व्रत के अनुशासन से ज्ञान की धारा सदा प्रवाहित होती है।
54. कर्मयोग में लगा हुआ व्यक्ति सदा निःस्वार्थ रहता है।
55. अनंत आकाश के स्पर्श से तेरा चरित्र निर्मल और उच्च बनेगा।
56. निराकार स्वरूप से जीवन की जड़ें और गहरी होंगी।
57. विवेक का दीप आत्मबोध का स्रोत है।
58. आत्मा की प्रेरणा हृदय को हरियाली और ताजगी से भर देती है।
59. समय के मूल्य को समझ, विवेक को अपना आधार बना।
60. मन का उज्जवल स्वभाव प्रेरणा का प्रवाहमान स्रोत बनता है।
61. संघर्षों की स्पर्धा में तेरा उत्कर्ष नवीन ऊँचाइयाँ प्राप्त करेगा।
62. इस विश्व नाटक में जीवन संवेदनाओं का प्रवाह मात्र है।
63. सभी उपलब्धियाँ आत्म-समर्पण और प्रेरणा की देन हैं।
64. जो सदा चलता है, वही स्व-स्वरूप में प्रसन्न रहता है।
65. चेतना का विस्तार नित नई अनुभूतियों को जन्म देता है।
66. संपूर्ण विश्व का अनुभव शाश्वत सत्य का प्रतिबिंब है।
67. निरंतर प्रयास से कर्म-पथ पर सजग और सक्रिय बना रह।
68. आत्म-तत्व का प्रकाश सदा अविनाशी और तेजस्वी होता है।
69. अद्भुत भूमि की निर्मलता से मन की पवित्रता का उदय होता है।
70. प्रकृति में स्थित आत्मा ही भक्ति और अमृत की वर्षा करता है।
71. विधेय भाव में स्थित होकर, अनादि ज्ञान को आधार बना।
72. उत्कर्ष के मार्ग को स्वयं प्रेरित होकर निर्मित कर।
73. संपूर्णता का प्रतिबिंब आत्मदर्पण में दृढ़ता से दिखता है।
74. अपने स्वरूप के प्रकाश से हृदय को उल्लासित कर।
75. तेरा जीवन अनमोल है, सदा निर्मल और चिरस्थायी है।
76. शाश्वत स्मृति हृदय की दीपशिखा बनकर प्रकाशित रहती है।
77. समय के अनुकूल रहकर जीवन को उज्ज्वल बना।
78. आत्मा को गहराई से जान, त्रिगुणात्मक चेतना को धारण कर।
79. मनुष्यों में समय व्यर्थ मत कर, उन पर प्रेम और विश्वास रख।
80. तेरा अस्तित्व निर्गुण, अनंत और अमृतमय है।
भावार्थ:
यह कविता आत्मबोध, आत्मसंयम, आत्मविश्वास और जीवन के उच्च आदर्शों का संदेश देती है। यह बताती है कि व्यक्ति को संसार की क्षुद्र चिंताओं से ऊपर उठकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ना चाहिए, अपनी आत्मा को पहचानना चाहिए और प्रेम व विश्वास के साथ जीवन जीना चाहिए। "हर हर महादेव" का उद्घोष हमें अडिग, धैर्यवान और सशक्त बनाता है।
रूपेश रंजन
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