माटी की सौगंध....
माटी की सौगंध....
माटी ही आराध्य, माटी ही प्राण,
माटी की रक्षा में अर्पित ये जान।
धन-वैभव ले जा, समृद्धि हर ले,
पर मातृभूमि की अस्मिता ना गिरने दे।
यदि ना बचा सका निज धरा की लाज,
तो जीवन क्या, बस शेष हैं राज!
पराधीन भूमि पर श्वास भी विष है,
मृत्यु प्रियतर, गर मातृभूमि से विस है।
माटी की गूंज, माटी की शान,
माटी के लिए ही ये तन-मन-प्राण।
मर जाऊं, पर अपमान न होवे,
माटी का सम्मान अमर ही रोवे!
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