मेरा मार्ग स्पष्ट है...
मेरा मार्ग स्पष्ट है
मेरा मार्ग कितना स्वच्छ, कितना प्रशस्त है,
स्वयं को जानकर, मैं स्वयं में मस्त हूँ।
निज प्रकृति का गूढ़ रहस्य जब प्रकट हुआ,
तब से ही कर्म में मेरा हृदय व्यस्त है।
ना मुझमें चिंता, ना किसी संकोच की पीड़ा,
ना ही विजय का लोभ, ना पराजय की क्रीड़ा।
कर्म-पथ पर चलना ही मेरा परम धर्म,
जो भी हो परिणाम, न कोई इच्छा तीव्र या क्षीण।
यह प्रश्न नहीं कि सही हूँ या कि मैं गलत,
सत्य तो यह है, मैं अपने स्वभाव से अविरत।
जैसा ईश्वर ने गढ़ा, बस वैसा ही हूँ,
न कोई आडंबर, न कोई छल, न कोई भयाक्रांत।
संस्कारों के चक्र में नहीं मेरा प्रवाह,
न जग के नियमों में मेरा हृदय कराह।
यदि प्रकृति का अनुशीलन ही मेरा पथ है,
तो क्यों करूँ इस माया-जगत का प्रवाह?
मैंने अपने अस्तित्व को गहराई से देखा,
निज स्वरूप को बिना किसी भ्रम के लेखा।
जहाँ चेतना का प्रकाश अपूर्व रूप में खिला,
वहीं मेरा आत्मबोध, वहीं मैं स्व-अभिषेक हुआ।
संसार की सीमाएँ मेरी गति को नहीं रोकती,
मेरी धारा निर्बाध, मेरी शक्ति अपार होती।
जो है परंपरा, उससे मैं परे भी हूँ,
किंतु प्रकृति के मापदंडों से कभी भिन्न नहीं।
हो सकता है यह पथ कठिन, अगम्य, अनिश्चित,
हो सकता है यह मार्ग किसी को अचंभित।
परन्तु मैं जानता हूँ, यही मेरा धर्म है,
यही मेरी साधना, यही मेरा संचित।
ईश्वर की सृष्टि में सब कुछ अपने रूप में पूर्ण,
कोई उन्मुक्त है, कोई है नियमों में बंध्य।
पर मेरे लिए स्वतंत्रता ही वास्तविक सत्य,
क्योंकि मेरा जीवन प्रकृति का ही एक स्पंद्य।
क्या यह विद्रोह है? क्या यह अनधिकार?
या यह है स्वयं को जानने का अधिकार?
मैं देख रहा हूँ सत्य को निर्विकार,
जहाँ आत्मा स्वयं ही है एक उपहार।
मुझे बाहरी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं,
नहीं चाहिए कोई प्रमाण, न कोई सराहना सही।
मेरा अस्तित्व स्वयं में एक अविचल सत्य,
जिसे प्रकृति ने गढ़ा, जो चेतना से लिपि।
संभव है कि मैं संसार के नियमों से अलग,
संभव है कि मेरा चिंतन हो असामान्य सजग।
परन्तु जब तक मैं अपनी प्रकृति में स्थित,
तब तक मेरा पथ शुद्ध, मेरा संकल्प निर्द्वंद्व।
हर कण में जो प्रवाहित वही मैं भी हूँ,
जो अनंत में है विलीन, उसी में स्थित हूँ।
मेरा अस्तित्व न बाध्य, न सीमित, न स्थिर,
यह प्रवाहमयी चेतना का एक अनाहत सुर।
मुझे ज्ञात है, मैं कोई बंधन नहीं मानता,
न मैं किसी सांसारिक मोह में उलझता।
प्रकृति का अनुयायी हूँ, इसी में तृप्त हूँ,
यही मेरा सत्य है, यही मेरा आत्म-स्वरूप।
रूपेश रंजन.....
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