मुझे तो सब पता है...

 मुझे तो सब पता है


मुझे तो सब पता है, पर उसे नहीं खबर,

वो तो बस खेल रही थी, अपने सपनों का सफर।

सोच रही थी, वो नियति की धारा है,

पर अदृश्य डोर से कोई और इशारा है।


वो जो कर रही थी, वो उसकी चाह नहीं,

किसी और की रची, कोई जालसाज़ी सही।

सोच रही थी, वो मुक्त गगन की उड़ान,

पर परदे के पीछे कोई और था महान।


मेरी दृष्टि से छुपा कुछ भी नहीं,

हर कदम, हर विचार, सब सुना, सब सही।

वो जो भ्रम में थी, अपनी सत्ता के,

वास्तव में थी, किसी और की परछाई के।


मौन रहकर मैंने देखा हर रंग,

कभी छल, कभी कपट, कभी निर्मम संग।

वो जो समझ रही थी, वो थी उसकी विजय,

असल में थी, नियति की लिखी पराजय।


वो सोच रही थी, छोड़ आई है मुझे,

पर कहानी में पहले ही लिख चुका था मैं तुझे।

मेरे भाव, मेरी कथा, मेरे संवाद,

उसमें तेरे लिए न था कोई प्रसंग, कोई संवाद।


तेरी हर चाल का मैं पहले से ज्ञाता,

तेरी नियति का मैं स्वयं विधाता।

तेरी मुस्कान, तेरा छलावा, तेरा अभिनय,

सब देख चुका था, तेरा हर अनुनय-विनय।


तेरी आँखों की भाषा, तेरी चुप्पी का शोर,

सब पढ़ चुका था, तेरा अंतस्तल का जोर।

जो सोचा था तूने, वो पहले ही घट चुका,

तेरी योजना का हर पृष्ठ पहले ही रच चुका।


समय की स्याही से लिखी थी गाथा,

जिसमें तेरा नाम कहीं नहीं था।

तेरी छवि तो बस एक धुंधली स्मृति थी,

जिसे नियति ने मेरे हस्ताक्षर से मिटा दिया था।


वो जो समर्पण तेरा, वो जो प्रण तेरा,

सब असत्य, सब मिथ्या, सब बिखरा बसेरा।

सोच रही थी, तूने खुद चुना मार्ग,

पर वो पहले ही रचा था, मेरे शब्दों का भार।


अब जब लौटेगी तू बीते समय की राह,

समझेगी, जो सच था, वो था मेरा गाथ।

मैंने लिखा था, और वो घटित हुआ,

मेरे शब्दों में तेरा नाम तक नहीं हुआ।


तेरा आना, तेरा जाना, सब था एक भ्रम,

एक कहानी, जिसका अंत था पहले ही खतम।

अब तू मुक्त है, पर एक बंधन के संग,

क्योंकि मेरी कथा में न था तेरा कोई रंग।


मुझे तो सब पता था, पर तुझे खबर नहीं,

जो समझा तूने सत्य, वो मेरी कलम का लेखा था सही।


 रूपेश रंजन...

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