बीतता मैं, बीतते तुम...
बीतता मैं, बीतते तुम
मैं भी बीत रहा हूँ,
धीरे-धीरे...
तुम भी बीत रहे हो,
धीरे-धीरे...
चलते-चलते ही कोशिश की थी मैंने,
कुछ पल के लिए हमारे-तुम्हारे बीच
वक़्त को रोकने की,
पर तुम चलते रहे,
मैं बस देखता रह गया...
सफ़र में कष्ट था,
थोड़ा मैं टूटा, थोड़ा तुम भी,
पर सफ़र फिर भी चलता रहा,
रुका नहीं, थमा नहीं...
एक न एक दिन मैं भी बीत जाऊँगा,
यह सफ़र समाप्त हो जाएगा,
किसी नई यात्रा के लिए...
पर यह छोटा सा दर्द,
जो कभी शब्द न बन सका,
दिल के किसी कोने में
रह ही जाएगा...
रूपेश रंजन
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