तुम मेरी प्रियसी हो...
तुम मेरी प्रियसी हो...
मैं क्यों श्याम की बात करूं,
मैं क्यों तुम्हें राधा मानूं?
मुझे तुम्हें कभी नहीं छोड़ना,
यूँ ही तुम्हें ज़िंदगी भर अपने रंग में रंगना है।
ना मैं श्याम की तरह,
ना तुम्हें राधा मानकर रंग लगाऊंगा,
तुम मेरी प्रियसी हो, श्याम की नहीं,
मैं तुम्हें अपने मन से रंग लगाऊंगा।
गुलाबी तेरे होंठों पर रख दूं मोहब्बत,
सिंदूरी तेरी माँग में भर दूं हसरत,
तेरे बदन पर उड़ते रंगों की बूंदें,
बन जाएँ मेरी चाहत की बरसात।
भीगे-भीगे बालों से टपकती बूँदें,
तेरी साँसों में बस जाऊँ धीरे-धीरे,
हाथों में पकड़ लूँ तेरी नरम हथेलियाँ,
और तेरी धड़कनों में घुल जाऊँ।
ये होली बस रंगों की नहीं,
ये होली तेरे मेरे इश्क़ की होगी,
ना कोई कृष्ण, ना कोई राधा,
बस मैं और तुम, और ये रंगों की मौज होगी।
तो आओ, मैं तुम्हें अपने मन से रंग दूं,
अपनी बाहों की छाँव में समेट लूं,
इश्क़ के इस अनोखे त्यौहार में,
तुम्हें ज़िंदगी भर के लिए अपना कर लूं।
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