सब मिट्टी के लिए ही है...

 

सब मिट्टी के लिए ही है

सब मिट्टी के लिए ही है,
मिट्टी दे दे, सब ले ले।
नहीं तो मार दे मुझे,
मेरी मिट्टी पे ही।

बचा नहीं पाया अपनी मिट्टी,
तो जीना भी क्या जीना है?
पराई ज़मीं पर साँस लेना,
सच कहूँ तो शर्मींदा जीना है।

जहाँ जन्मा, वहीं मिट जाऊँ,
बस यही मेरी आरज़ू है।
मिट्टी की खुशबू संग रहे,
यही जीवन की आरती है।

इसे बचाने जो आगे बढ़े,
वही सच्चे वीर कहाएंगे।
वरना बेबसी में जीने वाले,
बस नाम को रह जाएंगे।

अपनी मिट्टी, अपनी शान,
इसी के लिए तन-मन-प्राण।
गर इसका मान न रख सका,
तो जीवन भी एक अपमान!

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