तुमने मुझे नहीं कुछ भी देकर, बहुत कुछ दे दिया, मेरे दाता...
तुमने मुझे नहीं कुछ भी देकर,
बहुत कुछ दे दिया,
मेरे दाता,
पूरा जीवन कष्ट में देकर,
भी बहुत आनंद दे दिया।
तुमने मेरे हाथों की रेखाएँ जलने दीं,
पर खंडहर मन में भी दीप जलाने दिए।
अंधकार के गर्त में धकेल दिया,
मगर वहाँ से सूरज उगाने दिए।
हर श्वास को एक बोझ बना दिया,
हर पल को एक संघर्ष सजा दिया।
पर गिरते हुए भी थाम लिया मुझे,
हर हार में विजय का स्वाद दिया।
भूख की आग में तपाया मुझे,
पर धैर्य का सागर भी दिखाया मुझे।
जब पैरों तले ज़मीन खिसक गई,
तो हौसले के पंख उगाए मुझे।
रोते हुए जब पथ पर बढ़ा,
हर आहट ने और रुला दिया।
पर आँसुओं की धाराओं में भी,
संघर्ष का संगीत सुना दिया।
शूलों से सजा दिया मेरा पथ,
पर पैरों को लहूलुहान होने दिया।
फिर उसी रक्त की बूंदों से,
जीत की चुनरी रंगवा दिया।
तुमने इच्छाओं को राख बना दिया,
हर स्वप्न को चिता पर सुला दिया।
पर उसी राख से उड़ने को,
मुझे नया आकाश दिखा दिया।
तूने विष का प्याला भर दिया,
हर घूँट में पीड़ा ही दी।
पर इस जलते हुए हलक को भी,
अमरत्व की पहचान दे दी।
तूने हर अपने को पराया किया,
हर रिश्ते को कसौटी पर उतारा।
पर जब मैं एकाकी रह गया,
तो आत्मबल को दान में उतारा।
मुझे गिराया, मुझे रुलाया,
हर तमन्ना को कुचल दिया।
पर हर बार टूटते हुए भी,
संघर्ष का पथ दिखा दिया।
तूने हाथों से जीत छुड़ा दी,
हर स्वप्न को मृगतृष्णा बना दिया।
मगर गिरते हुए भी,
लड़ना सिखा दिया।
हर पराजय में भी एक सीख दी,
हर वेदना में एक ज्योति दी।
तेरी इस क्रूर करुणा ने,
मुझे जीवन का अर्थ दे दिया।
अब कोई भय नहीं, कोई पीड़ा नहीं,
अब कोई आँसू भी वेदना नहीं।
क्योंकि तूने मुझे कुछ भी न देकर,
सब कुछ दे दिया, मेरे दाता!
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