काम भी करना होता है...
काम भी करना होता है,
बस बोलना जरूरी नहीं है किसी मंच से खड़े हो कर।
बोलने की आज़ादी चाहिए,
लोगों को गाली देने की आज़ादी चाहिए।
इन्फोसिस एक दिन में नहीं बना है,
कोई कुनाल कामरा बोल सकता है,
लेकिन एक पान की दुकान भी नहीं चला सकता।
सुधा मूर्ती काम करती हैं,
बस बोलती नहीं हैं।
तुम बस बोलो,
खूब बोलो,
बोलते रहो,
एक खोखले डब्बे की तरह बजते रहो।
मैं भी सोच रहा हूँ,
सब कुछ छोड़कर बोलना शुरू कर दूं,
जोर-जोर से बोलूं,
हर किसी को गाली दूं,
उनका मजाक उड़ाऊं,
हर मंच से ये सब करूं।
मत मांगो माफी,
तुमसे माफी किसे चाहिए?
मुझे तो आश्चर्य होता है ये सोच कर,
कि किसी को कुनाल से भी माफी चाहिए।
कई दूसरे लोग भी कुनाल का समर्थन कर रहे हैं,
मैं भी कर रहा हूँ।
मुझे भी लगता है कि सबको बोलने की आज़ादी मिलनी चाहिए,
लेकिन हर बात पे ध्यान देना जरूरी नहीं है,
कुछ बातें ध्यान पाने के लिए ही बोली जाती हैं।
रूपेश रंजन...
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