अस्तित्व की अनिश्चितता...

अस्तित्व की अनिश्चितता


जैसे ही नाम तुम्हारा पुकारा गया,

कुछ बदल गया, कुछ निखारा गया।

जैसे लहरें बिखरती हैं जल में,

रूप नया ढलता हर पल में।


जो अनजाना था, स्वतंत्र था वही,

पर नज़रों ने छू लिया अभी।

अब जो देखा, जो पहचाना गया,

वो पहले सा ना रह पाया गया।


हाइजेनबर्ग की उस बात सा,

जानना भी बदलता है पास का।

जो था स्थिर, जो था निश्चित,

वो अब बन गया थोड़ा विचित्र।


पर इस परिवर्तन में सत्य यही,

तुम वही हो, जैसे थे कभी।

हर नज़र नया आकार दे,

पर आत्मा तुम्हारी अडिग रहे।



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