मुझे बोलने का मन कर रहा है...
मुझे बोलने का मन कर रहा है,
मैं बोलूँगा,
शब्दों की जंजीरें तोड़ूँगा,
मैं लोगों का मज़ाक उड़ाऊँगा,
तुम भी सुनना,
तुम्हें भी अच्छा लगेगा।
इसमें कोई प्रयोजन नहीं,
बस दिल ने चाहा, तो बोल दिया,
कभी हँसी में, कभी तंज़ में,
तो कभी सच को ही खोल दिया।
पर सच कहने पर सवाल उठते हैं,
हर लफ्ज़ अब तौला जाता है,
कहीं कोई धारा, कहीं कोई केस,
फिर किसी को खामोश किया जाता है।
कल किसी ने सत्ता पर तंज़ कसा,
तो उसे राष्ट्रद्रोही कह दिया गया,
किसी ने अपना हक़ माँगा,
तो उसे अराजक बता दिया गया।
क्या हम सच में आज़ाद हैं?
या यह सिर्फ़ एक छलावा है?
कभी किताबें जलती हैं,
तो कभी कविताएँ दबाई जाती हैं,
सोशल मीडिया पर शब्दों की लड़ाई,
हर पोस्ट पर पहरेदारी बढ़ाई जाती है।
पर आज मेरा मन था,
तो मैंने तुम्हारे बारे में थोड़ा मज़ाक कर लिया,
कल तुम भी कर लेना,
पर डर मत जाना,
क्योंकि कहीं ऐसा न हो
कि तुम्हारी हंसी भी गुनाह बन जाए,
और तुम्हारी आवाज़ भी कैद कर दी जाए।
क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारी थी, है और रहेगी,
बस इसे बचाने की लड़ाई हमें खुद लड़नी पड़ेगी।
रूपेश रंजन...
Comments
Post a Comment