समुद्र का सत्य...
समुद्र का सत्य
समुद्र विस्तीर्ण है, क्योंकि वह लवणिमय है,
अपने तीव्र खारेपन में ही स्थायित्वमय है।
लहरों के आलिंगन में अनगिनत रहस्य,
हर बूँद में छिपे हैं युगों के संदेश।
यदि मधुर होता, तो विलुप्त हो जाता,
रसिक मानव इसे पल में पी जाता।
नदियों सा प्रवाहित हो कहीं खो जाता,
अपना अस्तित्व युगों पहले ही त्याग जाता।
लवण ने इसे कठोरता प्रदान की,
हर आघात में दृढ़ता संधान की।
जो कटुता को धारण कर सहता है,
वही चिरकाल तक अविचल रहता है।
समुद्र विस्तृत है, क्योंकि वह कटुता का धारक है,
स्वयं के सत्य में ही उसका आधार है।
Comments
Post a Comment