माटी की महिमा...

 

माटी की महिमा

माटी ही सबकी गाथा है, माटी ही पहचान,
माटी के हित जो जीते हैं, वे हैं सच्चे प्राण।

सम्पदा ले ले तू मेरी, श्वासों का संचार,
किन्तु धरा ना छूटे मेरी, यह संकल्प अपार।

यदि धरा ना रक्षित कर सका, क्या जीवन अभिशाप?
पराधीनता से मृत्यु भली, यह ही सच्चा जाप।

रक्त से रंजित कर दूं तन, पर न झुके यह शीश,
परशु उठे, न झुके चरण, गूंजे जय-आवेश।

धूलि मेरी आभूषण, कण-कण में विश्वास,
जब तक सांसें शेष रहें, धरती का उपवास।

मरण स्वीकार्य इसी धरा पर, अन्य धरा पर क्यों?
जीवन का पावन श्रंगार, अपनी माटी हो!

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