मैं दुनिया के लिए नहीं..

 मैं दुनिया के लिए नहीं...


मैं दुनिया के लिए नहीं,

अपनी प्रेयसी के लिए लिखता हूँ।

लोग सराहें या ठुकरा दें,

मुझे बस उसके लबों की हँसी चाहिए।


शब्द मोतियों से पिरोऊँ या

आग के शोले बरसाऊँ,

हर पंक्ति में बस उसकी छवि हो,

हर भाव में बस उसका नाम आए।


मैं कोई कवि नहीं,

जो जग को रिझाने को लिखे,

मैं बस एक प्रेमी हूँ,

जो अपनी प्रेयसी को सजाने को लिखे।


मुझे कोई तालियाँ नहीं चाहिए,

ना किसी की वाहवाही का लालच है,

बस उसकी आँखों में चमक आ जाए,

बस उसके दिल में हलचल मच जाए।


मैं लिखता हूँ उसकी मुस्कान के लिए,

उसके शर्म से झुके गालों के लिए,

मुझे बस उसे खुश करना है,

बस उसे अपने शब्दों में सजा लेना है।



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