अंतर रहेगा...

 

अंतर रहेगा

समंदर और नदियाँ एक नहीं हो सकती,
नदी मिलकर भी समंदर नहीं हो सकती।
बहती है, समर्पित होती है, फिर भी,
अपनी पहचान खो नहीं सकती।

अंतर है, सदा रहेगा,
चाहे लहरें कितनी भी संग बहेगा।
नदी निर्मल, समर्पण की मूरत,
समंदर गहरा, गंभीर सूरत।

कितनी भी कोशिशें कर ली जाएं,
फासले फिर भी रह जाएंगे।
नदी का स्वभाव देना है,
समंदर का स्वभाव लेना है।

यही नियम है, यही सृष्टि की माया,
एक के बिना दूजा अधूरा, फिर भी पराया।
मिलकर भी दोनों जुदा रहेंगे,
समंदर और नदियाँ कभी एक न होंगे।

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