विराट कोहली की विदाई: एक युग का अवसान और अधूरी अपेक्षाओं का विषाद...
विराट कोहली की विदाई: एक युग का अवसान और अधूरी अपेक्षाओं का विषाद
समय की धारा में कई नायक आए और चले गए। इतिहास की रेत पर अनेक पदचिह्न अंकित हुए, किंतु कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बल्कि युग बन जाते हैं। सर डॉन ब्रैडमैन जैसे महापुरुषों ने भी कभी बल्ला थामा और फिर उसे विश्राम दिया। किंतु जब विराट कोहली जैसे समर्पित, संघर्षशील और आत्मविस्मृत योद्धा मैदान को अलविदा कहते हैं, तो वह केवल एक खिलाड़ी का संन्यास नहीं होता — वह हमारे सपनों, हमारी आकांक्षाओं और हमारी खेल संस्कृति का एक भावनात्मक विसर्जन होता है।
विराट: एक नाम, एक जुनून, एक युग
विराट कोहली केवल रन बनाने वाली मशीन नहीं रहे, बल्कि भारतीय क्रिकेट के आत्मबल और जुझारूपन का पर्याय बन चुके थे। उनकी आक्रामकता में आत्मविश्वास था, उनकी बल्लेबाजी में सौंदर्य का विज्ञान और उनके व्यवहार में अनुशासन का दर्शन। उन्होंने मैदान पर ना केवल गेंदबाजों की धज्जियाँ उड़ाईं, बल्कि एक पीढ़ी को यह सिखाया कि आत्मबल, परिश्रम और निष्ठा से कुछ भी संभव है।
हमारी मानसिकता का आईना: विदाई की व्याकुलता
जब ऐसी विराट शख्सियत को हम विदा करते हैं, तो वह केवल एक आधिकारिक निर्णय नहीं होता — वह हमारे सामूहिक मानस का प्रतिबिंब होता है। यह विदाई उस भारतीय मानसिकता को उजागर करती है जो अपने नायकों से कभी संतुष्ट नहीं होती, जो उन्हें अंतिम क्षण तक संघर्ष करते हुए देखना चाहती है, और जो उन्हें एक गौरवशाली विदाई के साथ मंच से उतरते हुए देखना चाहती है।
विराट का यूँ अचानक संन्यास लेना हमारे भीतर एक रिक्तता भर देता है — एक अधूरी यात्रा का एहसास, एक अनकहा अलविदा। मन में कहीं न कहीं यह टीस बनी रहती है कि क्या कुछ वर्ष और वो खेल सकते थे? क्या एक भव्य, योजनाबद्ध और गरिमामयी विदाई उनके नाम अधिक उपयुक्त न होती?
दर्द का स्वीकार और अपेक्षाओं की असमाप्तता
हर विदाई में एक गहन पीड़ा होती है, किंतु विराट की विदाई में एक पीड़ा के साथ-साथ एक अधूरापन भी है। उनकी क्षमता, उनकी फिटनेस और उनके अद्वितीय अनुभव को देखते हुए, हम सभी आश्वस्त थे कि वह कुछ और वर्षों तक भारत का गौरव बनकर चमकते रहेंगे। उनकी बल्लेबाजी की लय में अभी भी वह तीव्रता थी जो किसी नवोदित खिलाड़ी में होती है।
लेकिन जब जीवन की राहें मोड़ लेती हैं, तो हमें स्वीकार करना पड़ता है कि नायक भी मनुष्य होता है — थकता है, बदलता है, और अंततः विदा लेता है।
एक भावपूर्ण कविता:
गली-गली था नाम तेरा, छाया था तू आसमान में,
हर रन में था विश्वास भरा, हर पारी एक अभिमान में।
नयन हमारे ढूँढ़ेंगे तुझको, हर आने वाली शाम में,
वो जीत का क्षण, वो गरजती हुंकार, अब सन्नाटा है थाम में।
तेरा बल्ला बोले तो दिल धड़कते थे करोड़ों के,
तेरे आउट होते ही जैसे चुप्पी हो त्योहारों के।
अब तू गया, पर याद रहेगी वो हर एक सुबह,
जब तेरी पारी से खिलती थी उम्मीदें हजारों के।
तू गया नहीं विराट, तू बस खामोशी में समा गया है,
हर बच्चे के स्वप्न में अब तेरा ही नाम लिखा गया है।
संन्यास तेरा एक विराम नहीं, वो आरंभ है किंवदंती का,
तू खिलाड़ी नहीं — तू युग है, जो इतिहास में सदा गूंजेगा।
रचयिता: रूपेश रंजन
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