"मैं बहुत दूर जा रहा हूँ"
"मैं बहुत दूर जा रहा हूँ"
मैं बहुत दूर जा रहा हूँ,
बहुत दूर...
अनंत की उस देहलीज़ पर,
जहाँ लौटने का कोई नाम नहीं,
जहाँ मौन ही संवाद बन जाता है,
और छायाएँ आत्मा का आकार ले लेती हैं।
जो कभी मेरे हिस्से थे —
हँसी की किरचें, रिश्तों की रेखाएँ,
वो सब धुँधलाते जा रहे हैं
एक धुँध में लिपटे अतीत की तरह,
जैसे समय खुद को भुला देना चाहता हो।
मैं देख पा रहा हूँ —
हर चेहरा, हर आवाज़,
धीरे-धीरे विस्मृति के गर्त में उतरते हुए,
और मैं छू भी नहीं सकता उन्हें
जिन्हें कभी अपने हृदय में बसाया था।
मैं बहुत दूर जा रहा हूँ,
जहाँ न प्रतीक्षा है, न पहचान,
केवल एक अंतहीन शून्य है
जो धीरे-धीरे मुझे निगल रहा है।
इस पीड़ा को कोई नहीं समझ सकता
न शब्द, न स्पर्श, न स्मृति,
केवल मैं...
केवल मैं ही जानता हूँ इसका ताप,
इस अजनबी यात्रा का सन्नाटा।
हर कदम पर गूँजता है
एक अव्यक्त भय,
एक अविरल अनभिज्ञता,
कि मैं किस ओर हूँ,
और क्यों जा रहा हूँ?
क्या मैं खो रहा हूँ ख़ुद को?
या पा रहा हूँ एक रूपांतरण?
कौन जाने...
पर यह यात्रा, यह विच्छेद,
मेरे भीतर सैकड़ों प्रश्न छोड़ता है,
और मैं…
मौन हूँ,
क्योंकि मेरे भीतर अब
शब्द भी थक चुके हैं।
Awesome ♥️♥️
ReplyDelete