मर्कज़-ए-मौत की आज़माइश क्या...
"मर्कज़-ए-मौत की आज़माइश क्या,
आज ही आ जाए तो बेहतर है,
कल के डर से क्या डरना,
जब हर लम्हा एक जहर है।"
"ज़िंदगी हर मोड़ पर खौफ़ लिए है,
मौत ही तो एक सच्ची ख़बर है,
तो क्यों न उसे गले लगाएँ,
जो हर साँस पर पहरा है।"
"आज का ग़म, कल से बेपरवाह हो,
बस एक बार ख़ुदा का सहारा हो,
आज ही वो फ़ैसला हो जाए,
जो हर कल में एक सवाल था।"
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