"एक खास वजह"...

 "एक खास वजह"


मैं इतना ऊब चुका हूँ इस ज़िंदगी से,

कि मुझे जीने की कोई ख़ास चाहत नहीं है।

मैं इतना परेशान हूँ,

दुनिया में हो रहे इतने सारे गलत को देखकर,

कि मुझे मरने में कोई दिक्कत नहीं है —

आज और अभी।


बहाना चाहे कुछ भी हो,

इसलिए सोचता हूँ —

कि कोई अच्छा-सा बहाना बना लूँ मरने के लिए।

थोड़ा-सा तो सुकून मिलेगा।


लड़ के ही मर जाऊँ,

गलत के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाऊँ,

कुछ लिख लूँ अन्याय के ख़िलाफ़,

या देश के लिए लड़ते हुए मर जाऊँ।

कुछ तो अच्छा लगेगा —

थोड़ा-सा भी।


कि किसी ख़ास वजह से मैंने जान दी,

बजाए इसके कि

मैं शक्कर की बीमारी 

या लकवे  जैसी किसी बीमारी से मर जाऊँ।

रुपेश रंजन

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