विराट कोहली के साथ अन्याय: जब महानता चुपचाप विदा होती है...

विराट कोहली के साथ अन्याय: जब महानता चुपचाप विदा होती है

“कुछ महान कहानियों का अंत शोर के साथ नहीं, बल्कि एक सन्नाटे के बीच होता है — और वह सन्नाटा अक्सर सबसे बड़ा अन्याय होता है।”

भारतीय क्रिकेट में विराट कोहली का नाम केवल रन बनाने वाले बल्लेबाज़ के रूप में नहीं, बल्कि एक युग निर्माता के रूप में लिया जाएगा। उनकी आक्रामकता, उनका जुनून, और भारत को टेस्ट क्रिकेट में ऊँचाइयों तक पहुँचाने की उनकी कोशिशें — यह सब उन्हें समय से परे एक किंवदंती बनाते हैं। लेकिन आज, जब हम उनकी वर्तमान स्थिति को देखते हैं, तो दिल में एक सवाल गूंजता है — क्या कोहली को वह सम्मान मिला, जिसके वे असल में हक़दार थे?

टेस्ट क्रिकेट: कोहली की आत्मा

विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को सिर्फ खेल नहीं, धर्म की तरह अपनाया। जब क्रिकेट धीरे-धीरे T20 की चमक में खो रहा था, तब कोहली ने टेस्ट क्रिकेट की गरिमा बचाए रखी। उन्होंने विदेशी ज़मीं पर जीत की भूख दी, तेज गेंदबाज़ी को अहमियत दी, और टीम को डर के बजाय चुनौती की भावना से खेलने की आदत डाली।

लेकिन आज, वही खिलाड़ी टेस्ट टीम से धीरे-धीरे गायब हो रहा है। कोई औपचारिक घोषणा नहीं, कोई विदाई नहीं — बस एक ख़ामोश हटना। क्या यह न्याय है उस इंसान के साथ जिसने टेस्ट क्रिकेट को फिर से जीवित किया?

जब विदाई भी छिन जाए

क्रिकेट में संन्यास केवल एक निर्णय नहीं होता — यह एक श्रद्धांजलि होता है, एक सम्मान होता है उस संघर्ष, उस बलिदान का जो खिलाड़ी ने वर्षों तक दिया। लेकिन कोहली के मामले में यह भी धुंधला होता दिख रहा है।

जिस खिलाड़ी ने 100 से अधिक टेस्ट खेले, देश को विदेश में ऐतिहासिक जीत दिलाई, उसे शायद वह विदाई भी न मिले जो कई औसत खिलाड़ियों को मिली। कोई गार्ड ऑफ ऑनर नहीं, कोई आखिरी भाषण नहीं — बस एक साइलेंट अपडेट, एक सूखा सा प्रेस नोट, और फिर इतिहास के पन्नों में गुम होती एक महानता।

क्रिकेट की राजनीति या स्मृति की बेईमानी?

क्या यह सिर्फ चयनकर्ताओं की नीति का परिणाम है या यह हमारी सामूहिक स्मृति की कमी है? हम भूल जाते हैं कि हर कोहली की चमक के पीछे वर्षों की तपस्या होती है। हम उनके खराब दौर को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, लेकिन उनके स्वर्णिम वर्षों को इतनी जल्दी भूल जाते हैं जैसे उन्होंने कभी कुछ दिया ही न हो।

कोहली: एक असाधारण इंसान, एक अधूरी विदाई

संभव है कि कोहली अगले कुछ महीनों में चुपचाप टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लें। एक ट्वीट, शायद एक छोटा सा वीडियो और फिर सन्नाटा। यह केवल एक संन्यास नहीं होगा, यह एक चेतावनी होगी — कि अगर विराट कोहली जैसे खिलाड़ी को सम्मानजनक विदाई नहीं मिलती, तो बाकी का क्या होगा?

यह एक ऐसे समाज की भी तस्वीर पेश करता है जो केवल तब तक प्यार करता है जब तक आप उन्हें गौरव देते हो। जब आप थक जाते हैं, जब आप एक ब्रेक लेते हैं — तो वही लोग आपकी जगह किसी और को खोजने लगते हैं।

निष्कर्ष: विराट कोहली — वह अध्याय जिसे हमने अधूरा छोड़ा

कोहली के साथ अगर यह अन्यायपूर्ण विदाई होती है, तो यह केवल उनके साथ नहीं, बल्कि क्रिकेट के उस मूल्य के साथ धोखा होगा, जो कहता है: “खिलाड़ियों को उनके योगदान से मापा जाना चाहिए, न कि उनके आखिरी स्कोर से।”

कोहली एक दौर थे, हैं और रहेंगे — लेकिन यदि उनका अंत सन्नाटे में होता है, तो इतिहास को यह प्रश्न बार-बार चुभेगा: क्या हम अपने नायकों को सच्चे अर्थों में कभी समझ पाए?



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