NMCH, पटना में लापरवाही के मामले: क्या बिहार का प्रमुख अस्पताल दम तोड़ रहा है?

NMCH, पटना में लापरवाही के मामले: क्या बिहार का प्रमुख अस्पताल दम तोड़ रहा है?

नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (NMCH), पटना — बिहार का एक प्रमुख सरकारी अस्पताल — बीते कुछ महीनों में एक के बाद एक ऐसे घटनाक्रमों में फंसा है जो न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि पूरे राज्य के स्वास्थ्य ढांचे पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं। शवों की दुर्दशा से लेकर ज़िंदा मरीज़ों के साथ हैरान करने वाली लापरवाहियों तक, NMCH में घटित ये 6 प्रमुख घटनाएं इस ब्लॉग में आपके सामने रख रहा हूँ।


1. मृत शरीर की आंख गायब — इंसान की लापरवाही या चूहों का हमला?

तारीख: 16 नवंबर 2024
30 वर्षीय फंटूष कुमार की गोली लगने से मौत हो गई थी। लेकिन जब शव ICU से परिजनों को सौंपा गया, तो उनकी बाईं आंख गायब थी। अस्पताल ने कहा कि चूहों ने आंख खा ली, जबकि परिवार ने मानव अंग चोरी की आशंका जताई। पुलिस ने FIR दर्ज की, दो नर्सों को सस्पेंड किया गया और एक मेडिकल बोर्ड गठित हुआ।


2. ज़िंदा मरीज़ की उंगलियाँ चूहों ने कुतर दीं

तारीख: 19 मई 2025
एक डायबिटीज़ से ग्रसित मरीज़ ने सुबह उठते ही देखा कि उनके चार पैर की उंगलियाँ गायब थीं — और आरोप लगा कि यह चूहों द्वारा काटे जाने से हुआ। यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हुई और बिहार स्वास्थ्य विभाग ने NMCH समेत अन्य सरकारी अस्पतालों की सफाई व्यवस्था की जांच के आदेश दिए।


3. मृत्यु प्रमाण पत्र को लेकर विवाद और हाथापाई

तारीख: 13–14 मई 2025
60 वर्षीय मीना देवी को पैर की हड्डी टूटने के बाद भर्ती किया गया था, लेकिन सर्जरी से पहले ही उनकी मौत हो गई। जब उनका बेटा अस्पताल से आधिकारिक मृत्यु प्रमाण पत्र मांगने गया, तो उसे सादे कागज़ पर सर्टिफिकेट दिया गया। विवाद बढ़ा, हाथापाई हुई और अंततः पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। बाद में अस्पताल ने सही प्रमाण पत्र जारी किया।


4. बच्चों को दी गई वयस्क दवा की डोज

तारीख: 2 फरवरी 2025
एक चार साल के बच्चे को बुखार के इलाज में गलती से वयस्कों की एंटीबायोटिक की डोज़ दे दी गई। बच्चा गंभीर स्थिति में ICU में पहुंचा और डायलिसिस करानी पड़ी। जांच में सामने आया कि फार्मासिस्ट और डॉक्टरों ने डोज की क्रॉस चेकिंग नहीं की। सौभाग्य से बच्चा बच गया, लेकिन यह मामला डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन सिस्टम की ज़रूरत को उजागर करता है।


5. सर्जरी में देरी से बिगड़ा एक्सीडेंट पीड़ित का हाल

तारीख: 27 जनवरी 2025
एक युवक को सड़क दुर्घटना के बाद पैर की हड्डी में गंभीर फ्रैक्चर हुआ। मगर अस्पताल में सर्जरी के लिए 14 घंटे का इंतजार करना पड़ा — ऑपरेशन थिएटर और डॉक्टर की अनुपलब्धता के कारण। इस देरी से संक्रमण हो गया और मरीज़ की हालत और बिगड़ गई। परिवार ने इस मामले को बिहार मानवाधिकार आयोग तक पहुँचाया।


6. पुराना केस: बिना अनुमति गुर्दा निकालने का आरोप

तारीख: मामला दर्ज – 2003; खारिज – मार्च 2025
एक मरीज ने 2003 में आरोप लगाया था कि उसका एक गुर्दा बिना अनुमति निकाला गया। यह केस दो दशकों तक अदालत में चला, लेकिन 2025 में पटना हाईकोर्ट ने इसे तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया। यह दर्शाता है कि मेडिकल लापरवाही के मामलों में न्याय पाना कितना कठिन है।


NMCH में लापरवाही की जड़ें कहाँ हैं?

इन छह मामलों से कुछ स्पष्ट कमज़ोरियाँ उभरकर आती हैं:

  • इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: चूहों से ग्रसित वार्ड, पर्याप्त ऑपरेशन थिएटरों की कमी
  • प्रक्रिया में ढिलाई: दवा देने में चूक, शवों की हैंडलिंग में लापरवाही
  • स्टाफ की कमी और थकान: ओवरलोडेड डॉक्टर और नर्सें, संवाद की कमी
  • अकाउंटेबिलिटी का अभाव: जांच प्रक्रिया धीमी और अपारदर्शी

समाधान क्या हैं?

  1. डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन सिस्टम लागू करें — जिससे डोज़ की गलतियों से बचा जा सके
  2. बुनियादी ढांचे को मज़बूत करें — साफ-सफाई, चूहों पर नियंत्रण, अतिरिक्त ऑपरेशन थिएटर
  3. स्टाफ को प्रशिक्षित करें — संवेदनशील मामलों में सही संवाद, दस्तावेज़ प्रक्रिया में पारदर्शिता
  4. पेशेंट राइट्स ओम्बड्समैन की नियुक्ति — जिससे मरीज़ों की शिकायतों का समय पर निवारण हो

निष्कर्ष

NMCH, पटना की ये घटनाएं किसी एक डॉक्टर या नर्स की गलती नहीं हैं — यह एक बड़ी प्रणालीगत विफलता की ओर इशारा करती हैं। अगर बिहार को अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में विश्वास बहाल करना है, तो उसे NMCH जैसे संस्थानों में जल्द और गहरी सुधार की ज़रूरत है।

अस्पताल के हर बिस्तर के पीछे एक परिवार की उम्मीद होती है — अब समय आ गया है कि उस भरोसे की रक्षा की जाए।

आपका,
रूपेश रंजन

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